-:मुफ़्लिसी (ग़रीबी):- मेरे मौला! कब हम काम पर जाएंगे? इस तरह ही रहे दिन तो मर जायेंगे भूखे रहकर के जीना भी क्या जीना है फिर भी जीते है, कि ये पल गुज़र जाएंगे हाँ अमीर-ए-शहर को अमीरी मुबारक गर हक़ीक़त को देखेंगे, डर जाएंगे भूख भी जिस्म पर ज़ख्म का रूप है मौत आएगी तो ये ज़ख्म भर जाएंगे एक मुफ़लिस ने बेटे को दी खुशखबर आंख लगते ही हम रब के घर जाएंगे अहल-ए-हुब्ब-ए-हकम से सवाली हूँ मैं पेट ख़ाली दिलासों से भर जाएंगे? सलमान मंसूरी "मुन्तज़िर" They need help not words. if you are capable of helping someone please do help. #Hope #lockdow #quarantine #hunger #poor