"उसका चेहरा.... कितनी सारी उपमाएँ दी जा सकती है उसे। वो सुर्ख लाल सिंदूर... वो सूरज की लाली लिए माथे की बिंदी... वो तीखे-तीखे भँवें उसकी, और उनकी खूबसूरती बढ़ाते... वो बड़े-बड़े नसीले नयन। और उनको ठहराव देता काज़ल... सच... अग़र काज़ल ना होता तो, लोग यूँही मर जायेंगे उन नैनों पर। और उनके कोमल लबों के ऊपर, वो तिल तो नज़र का टीका हैं मानो..! सच... वरना इस बला की खूबसूरती को, नज़र से बचाना भी मुश्किल काम हैं।"