चलना था दूर तक तो मैं चलता गया , सांसें भरती गई ; दिन ढलता गया , दूर तक न दिख रही थी वो मोड़ जहां मुझको रुकना था , मंजिल आगे है यही सोच कर बढता गया ।। बदलते मौसम मे खुद भी ढलता गया , रुकने का न था कोई बहाना सो मैं चलता गया , कभी लड़खड़ाता तो कभी सँभलता गया , मंजिल आगे है यही सोच कर बढता गया ।। ManZil....