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मुद्दत हुई मुद्दत हुई तुमसे बिछड़े हुए, पल चुनते

मुद्दत हुई

मुद्दत हुई तुमसे बिछड़े हुए, 
पल चुनते चुनते अफ़साने सो गए, 
जिनको भी चाहा वो बेगाने हो गए,

अब बात कहें अपनी टुकड़ो में,
की अब नज़रों के दीवाने खो गए,

मुद्दत जो हुई तुमसे इल्तिजा की,
जो भी बनाये  रेत पर घर हमने,
सब लहरों में बहकर किनारे हो गए,

अब तुफानो का नज़ारा देखते है,
तनहा कश्ती के दिन हवा हो गए,

मुद्दत की अमीरी देखी जो,
पल मेरे खुशनुमा झिलमिल हो गए,
अब कोरों तक आंसू आकर मुझमे सो गए,
आपका अपना दोस्त।।।।।

©Tanha Shayar hu Yash
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