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।।श्री हरिः।। 34 - अन्वेषण 'तू क्या ढूंढ़ रहा है?

।।श्री हरिः।।
34 - अन्वेषण

'तू क्या ढूंढ़ रहा है?' जब कोई कमर झुकाकर भूमि से दृष्टि लगाए एक-एक तृण का अन्तराल देखता धीरे-धीरे पद उठाता चले तो समझना ही होगा कि उसकी कोई वस्तु खो गयी है और वह उसे ढूंढ रहा है। साथ ही वह वस्तु बहुत छोटी होनी चाहिये, जो तृणों की भी ओट में छिप सके।

कन्हाई कमर झुकाये एक-एक पद धीरे-धीरे उठाता चल रहा है। इस चपल ऊधमी के लिये इस प्रकार पृथ्वी पर नेत्र गड़ाकर चलना सर्वथा अस्वाभाविक है। ऐसी क्या वस्तु इसकी खोयी है कि इतनी शान्ति से, इतनी
स्थिरता एकाग्रता से लगा है अन्वेषण में। यह भूमिपर-तृणों की ओट में क्या देख लेना चाहता है?
anilsiwach0057

Anil Siwach

New Creator

।।श्री हरिः।। 34 - अन्वेषण 'तू क्या ढूंढ़ रहा है?' जब कोई कमर झुकाकर भूमि से दृष्टि लगाए एक-एक तृण का अन्तराल देखता धीरे-धीरे पद उठाता चले तो समझना ही होगा कि उसकी कोई वस्तु खो गयी है और वह उसे ढूंढ रहा है। साथ ही वह वस्तु बहुत छोटी होनी चाहिये, जो तृणों की भी ओट में छिप सके। कन्हाई कमर झुकाये एक-एक पद धीरे-धीरे उठाता चल रहा है। इस चपल ऊधमी के लिये इस प्रकार पृथ्वी पर नेत्र गड़ाकर चलना सर्वथा अस्वाभाविक है। ऐसी क्या वस्तु इसकी खोयी है कि इतनी शान्ति से, इतनी स्थिरता एकाग्रता से लगा है अन्वेषण में। यह भूमिपर-तृणों की ओट में क्या देख लेना चाहता है?

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