कभी ठोकर खाके जो गिरने लगे, तो हमें संभालने वो वहीं खड़े नज़र आते हैं, खेल में जान-बूझ के हारते, और फिर हमें हँसता देख मानो ख़ुद जीत जाते हैं, ना कभी मना करते बाज़ार चलने को, जो मन हमारा खाने को किया समोसा, शैतानियों पे कुटाई कम, और गालियों की सही ख़ुराक़ पे इन्हें रहा ज़्यादा भरोसा, ख़ुद आगे खड़े होके पापा का स्कूटर, तो पूरे शहर में बस हमने ही चलाया है, पिट गए उनके हाथों वो सब कसूरवार, जिनका नाम कभी हमने चिल्लाया है, ख़रीददारी पे निकलें, और पूरी दुकान जो घर पे ना आ जाये तो कहाँ इन्हें सबर है, हल्की नीली,ज़्यादा नीली,पूरी नीली, एकसी दिखती कमीज़ों में इन्हें फ़र्क़ करने का हुनर है, खाने के बड़े शौक़ीन,और मीठा जो मिल जाए तो पापा बच्चों की तरह ललचाते हैं, एक अलग ज़ुबान सीख ली है घर ने, जिसमें वो पान "खावे किव्वे सुनावे" हैं, सारी दुनिया है खड़ी बहुत पीछे, सबसे आगे ये अपने बच्चों की ख़ुशी रखते हैं, इंसान ही हैं, पर अपनों की ख़ातिर मशीन से लगे रहते हैं, मानो ना कभी थकते हैं, बड़ी अलग सी ये सारी यादें हैं याद, हमारे बचपन की हमारे प्यारे पापा के साथ, कितनी भी लिखो इतनी हैं कहानियाँ, के जो शुरू होंगी तो फिर ख़त्म ना होगी बात। - आशीष कंचन #प्यारेपापा प्यारे पापा #प्यारेपापा #yqbaba #yqdidi #yqquotes #yqtales #yqhindi #yqlove #yqpoetry