..... तोड़ दो.... बंधनों मेें क्यों बंधे हो? तोड़ दो... कर्तव्य पथ से दूरी, छोड़ दो.. भटकती धाराओं के रुख, मोड़ दो... संगठित हो चलने के लिऐ, सभी को जोड़ लो, आंधियों को दो चुनौती, रुख मोड़ दो.... बंधनों में क्यों बंधे हो? तोड़ दो... सच बोलने से टूटते हैं.. दिल तो क्या तोड़ दो..... बहुत आसान है ये सब कहना उतना कठिन है ये साहस करना तोड़ना बंधन नहीं आसान मगर फिर भी ये साहस पड़ेगा करना