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आजकल, क्या करें..? क्या ना करें..? "दिल के कोनों स

आजकल, क्या करें..? क्या ना करें..?
"दिल के कोनों से" आती है आवाज़ यही..

नीरसता का थामें आँचल,
या दें "सपनों" को उड़ान नई..

"भाव शून्य" हो रहा मानव,
अपने ही किए पर फूट-फूट रो रहा मानव..

मेरा कहना बस इतना सा है,
उम्मीदों का थामो आँचल, इस "वसुधा" का भी रखो ख़याल..

छोड़ो अपना स्वार्थ जरा सा, करो इस अमूल्य धरा का सम्मान..
खुशहाली आएगी चारों ओर, निरोगी होगा समस्त संसार..

अरे मानव..!  
भूल ही तो है, कर लो सुधार कर देगी वह "धरती माँ" तुम्हें माफ़
जो अब भी ना समझ सके, तो हो जाओ भयंकर विध्वंस के लिए तैयार...!
-प्रियतम


 ♥️ Challenge-567 #collabwithकोराकाग़ज़ 

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) 

♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। 

♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।
आजकल, क्या करें..? क्या ना करें..?
"दिल के कोनों से" आती है आवाज़ यही..

नीरसता का थामें आँचल,
या दें "सपनों" को उड़ान नई..

"भाव शून्य" हो रहा मानव,
अपने ही किए पर फूट-फूट रो रहा मानव..

मेरा कहना बस इतना सा है,
उम्मीदों का थामो आँचल, इस "वसुधा" का भी रखो ख़याल..

छोड़ो अपना स्वार्थ जरा सा, करो इस अमूल्य धरा का सम्मान..
खुशहाली आएगी चारों ओर, निरोगी होगा समस्त संसार..

अरे मानव..!  
भूल ही तो है, कर लो सुधार कर देगी वह "धरती माँ" तुम्हें माफ़
जो अब भी ना समझ सके, तो हो जाओ भयंकर विध्वंस के लिए तैयार...!
-प्रियतम


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