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दूर दराज के रहने वाले, एक दूजे से थे हम सब अनजान।

दूर दराज के रहने वाले, एक दूजे से थे हम सब अनजान।
नही किसी की कोई ख़बर, नही थी कोई भी पहचान।।
कैसे होगा मिलन सभी से, ये बनी थी एक अबूझ पहेली,
रंग, भाषा, भेष अलग, पर सब भारत माता की सन्तान।।
अपने किस्से बता रही हूँ, जो लगते है मुझको सपने,
बहुत याद आयेंगे मुझको तो मेरे सारे के सारे अपने।।

कविताओं से हमारा मिलन हुआ, दिल से दिल का तार जुड़ा,
शब्दों से रिश्तों को जोड़कर, दिल आप सबकी ओर मुड़ा।
कैसे बताऊँ रिश्ते सारे अपने मैं, जो आप सबसे है मैंने पाया,
अनजान से अपनत्व भी बढ़ा, आपसे नेह का बन्धन है जुड़ा।।
अपने किस्से बता रही हूँ, जो लगते है मुझको सपने।
बहुत याद आयेंगे मुझको तो मेरे सारे के सारे अपने।।

कोरे कागज़ की भण्डार, और नही थी कोई मेरी पहचान।
आप सबने अपना बनाकर, लेखिका का दिलाया सम्मान।
प्रेम मिला इतना मुझको, कैसे भूला पाऊँगी मैं सबको,
आप सभी आदरणीय सभ्य जनों में, मैंने भी पाया स्थान।।
अपने किस्से बता रही हूँ, जो लगते है मुझको सपने,
बहुत याद आयेंगे मुझको तो मेरे सारे के सारे अपने।।

भाई, दोस्त, बन्धु, सखा मिले, पिता का स्वरूप भी पाया,
रिश्तों की भरमार यहाँ पर, मिला मा की ममता की छाया।
और क्या क्या बताए आप सबको, शब्द मेरे कम पड़े है,
पूरी हुई सारी कमी यहाँ आकर, इतना कुछ है मैंने पाया।।
अपने किस्से बता रही थी, जो लगते है मुझको सपने।
बहुत याद आयेंगे मुझको तो मेरे सारे के सारे अपने।। #नेह_की_गाथा
#NUBGupta
#yqdidi
#yqbaba
दूर दराज के रहने वाले, एक दूजे से थे हम सब अनजान।
नही किसी की कोई ख़बर, नही थी कोई भी पहचान।।
कैसे होगा मिलन सभी से, ये बनी थी एक अबूझ पहेली,
रंग, भाषा, भेष अलग, पर सब भारत माता की सन्तान।।
अपने किस्से बता रही हूँ, जो लगते है मुझको सपने,
बहुत याद आयेंगे मुझको तो मेरे सारे के सारे अपने।।

कविताओं से हमारा मिलन हुआ, दिल से दिल का तार जुड़ा,
शब्दों से रिश्तों को जोड़कर, दिल आप सबकी ओर मुड़ा।
कैसे बताऊँ रिश्ते सारे अपने मैं, जो आप सबसे है मैंने पाया,
अनजान से अपनत्व भी बढ़ा, आपसे नेह का बन्धन है जुड़ा।।
अपने किस्से बता रही हूँ, जो लगते है मुझको सपने।
बहुत याद आयेंगे मुझको तो मेरे सारे के सारे अपने।।

कोरे कागज़ की भण्डार, और नही थी कोई मेरी पहचान।
आप सबने अपना बनाकर, लेखिका का दिलाया सम्मान।
प्रेम मिला इतना मुझको, कैसे भूला पाऊँगी मैं सबको,
आप सभी आदरणीय सभ्य जनों में, मैंने भी पाया स्थान।।
अपने किस्से बता रही हूँ, जो लगते है मुझको सपने,
बहुत याद आयेंगे मुझको तो मेरे सारे के सारे अपने।।

भाई, दोस्त, बन्धु, सखा मिले, पिता का स्वरूप भी पाया,
रिश्तों की भरमार यहाँ पर, मिला मा की ममता की छाया।
और क्या क्या बताए आप सबको, शब्द मेरे कम पड़े है,
पूरी हुई सारी कमी यहाँ आकर, इतना कुछ है मैंने पाया।।
अपने किस्से बता रही थी, जो लगते है मुझको सपने।
बहुत याद आयेंगे मुझको तो मेरे सारे के सारे अपने।। #नेह_की_गाथा
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