ये बिछड़ना मिलना ये तो शायद मुहब्बत है, अपने प्यार को वो दे देना, जिसकी उसे ज़रूरत है, हम दोनो थे क़ैद कहीं, अपनी समझ की सलाखों में, तुमने ऐसा रिहा किया, ख़ुद आज़ादी शर्मायी थी लोग लड़ते हैं मिलने की ख़ातिर, पर अपनी तो बिछड़ जाने की लड़ाई थी | By : Swanand Kirkire The Kaafir Poem - Part 2 -Manku Allahabadi The Kaafir Poem - Part 2 (By : Swanand Kirkire) #Barrier #swanandkirkire #kaafir #mankuallahabadi #Emotions