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मन के खेल.... ईर्ष्या, द्वेष,लोभ..मोह मन को बहुत भ

मन के खेल....
ईर्ष्या, द्वेष,लोभ..मोह
मन को बहुत भाते हैं,
मन इन्हीं सब में ही....
उलझा रहना चाहता है,
वास्तव में मन हमारी
परीक्षा ले रहा होता है,
मन का ये विशिष्ट योग,
देखना ये चाहता है.. कि
वास्तविकता को हम 
समझते भी हैं कि नहीं
अगर हम निश्चय कर लें,
कि ईर्ष्या,द्वेष, लोभ मोह की
दलदल में हमें नहीं फसना है
निश्चित मन ही हमारा सारथी बन
प्रतिदिन के इस महाभारत में,
करता है मार्गदर्शन निश्चित,
विजय भी करता है सुनिश्चित।। मन के खेल....
ईर्ष्या, द्वेष,लोभ..मोह
मन को बहुत भाते हैं,
मन इन्हीं सब में ही....
उलझा रहना चाहता है,
वास्तव में मन हमारी
परीक्षा ले रहा होता है,
मन का ये विशिष्ट योग,
मन के खेल....
ईर्ष्या, द्वेष,लोभ..मोह
मन को बहुत भाते हैं,
मन इन्हीं सब में ही....
उलझा रहना चाहता है,
वास्तव में मन हमारी
परीक्षा ले रहा होता है,
मन का ये विशिष्ट योग,
देखना ये चाहता है.. कि
वास्तविकता को हम 
समझते भी हैं कि नहीं
अगर हम निश्चय कर लें,
कि ईर्ष्या,द्वेष, लोभ मोह की
दलदल में हमें नहीं फसना है
निश्चित मन ही हमारा सारथी बन
प्रतिदिन के इस महाभारत में,
करता है मार्गदर्शन निश्चित,
विजय भी करता है सुनिश्चित।। मन के खेल....
ईर्ष्या, द्वेष,लोभ..मोह
मन को बहुत भाते हैं,
मन इन्हीं सब में ही....
उलझा रहना चाहता है,
वास्तव में मन हमारी
परीक्षा ले रहा होता है,
मन का ये विशिष्ट योग,