ऐसे ही तो नहीं बनता सागर ऐसे ही तो नही बनता कोई महान ऐसे ही तो नही मिलती मंजिल थोडा जलना पडता हैं थोडा ढलना पडता हैं थोडा लौहे कि भाती पकना पडता हैं तब जाकर गुणों कीा संचार होता हैं। मेरी कविता