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अकसर मैंने देखा है उसे चौराहें के उस मंदिर पर वो

अकसर मैंने देखा है उसे
चौराहें के उस मंदिर पर 
वो हर रोज सुबह आता है 
बैठता है रोता है 
एक नारियल खरीदता है 
और रोज चढ़ाता है 
जो उसकी भूख मिटा सकती थी
वो अक़सर उस पत्थर पर चढ़ता है 
उसका जो विश्वास है
और उसके चेहरे का वो भाव 
आह ..! कितना आनंद 
कितना तृप्त करता है मुझे
संघर्ष में भी नही भूलता उसे 
दो हाथ दो पैर के लिए
शुक्रियादा मनाता है 
पेट भरने को बस मिले
इतना ही चाहता है
टूटी चप्पल पैरो में
कंधे पर और हाथों में
कपड़े की गठरी लिए 
बड़ी आश से उसके पास आता है 
प्रार्थना करता है
सर झुकता है 
और रोज की तरह काम पर निकल जाता है
 अकसर मैंने देखा है उसे
चौराहें के उस मंदिर पर 
वो हर रोज सुबह आता है 
बैठता है रोता है 
एक नारियल खरीदता है 
और रोज चढ़ाता है 
जो उसकी भूख मिटा सकती थी
वो अक़सर उस पत्थर पर चढ़ता है
अकसर मैंने देखा है उसे
चौराहें के उस मंदिर पर 
वो हर रोज सुबह आता है 
बैठता है रोता है 
एक नारियल खरीदता है 
और रोज चढ़ाता है 
जो उसकी भूख मिटा सकती थी
वो अक़सर उस पत्थर पर चढ़ता है 
उसका जो विश्वास है
और उसके चेहरे का वो भाव 
आह ..! कितना आनंद 
कितना तृप्त करता है मुझे
संघर्ष में भी नही भूलता उसे 
दो हाथ दो पैर के लिए
शुक्रियादा मनाता है 
पेट भरने को बस मिले
इतना ही चाहता है
टूटी चप्पल पैरो में
कंधे पर और हाथों में
कपड़े की गठरी लिए 
बड़ी आश से उसके पास आता है 
प्रार्थना करता है
सर झुकता है 
और रोज की तरह काम पर निकल जाता है
 अकसर मैंने देखा है उसे
चौराहें के उस मंदिर पर 
वो हर रोज सुबह आता है 
बैठता है रोता है 
एक नारियल खरीदता है 
और रोज चढ़ाता है 
जो उसकी भूख मिटा सकती थी
वो अक़सर उस पत्थर पर चढ़ता है