एक स्त्री पर कितने बंधेज होंतें हैं ना हर बार एक नई डोरी से बाँध आते हैं इस मान्यता के तहत उस मान्यता के तहत पर उसकी खुदकी क्या मान्यता हैं उसपर कभी किसी ने एक भी डोरी नही खोली ना ...बांधते बांधते बांधते उसे इतना बांधा की वो खुदको जीना ही भूल गई बस बांधना बंधना और नई नई डोरियां... #neerajwrites women empowerment unspoken words women bondages