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1नवंबर 1984 मेरे जीवन का सबसे काला दिन असहाय से

1नवंबर 1984
मेरे जीवन का
सबसे काला दिन



असहाय से हम सब
देखते रह गए
लोगों की जीवित जलते
 1 नवंबर, 1984
स्तब्ध शहर के भीतर सेबंद दरवाज़े,
बंद खिड़कियों से झांकती आंखें,
दहशत की गन्ध,फैली दुर्गन्ध सी,
खुले होंटों मेंअटकी खामोश आवाज़ें।
टूटे, तोड़े गए स्वार्थवश परस्पर विश्वास,
हर गली हर चौराहे पे फैला अविश्वास,
लाल लाल छींटों से घबराता, डरता
1नवंबर 1984
मेरे जीवन का
सबसे काला दिन



असहाय से हम सब
देखते रह गए
लोगों की जीवित जलते
 1 नवंबर, 1984
स्तब्ध शहर के भीतर सेबंद दरवाज़े,
बंद खिड़कियों से झांकती आंखें,
दहशत की गन्ध,फैली दुर्गन्ध सी,
खुले होंटों मेंअटकी खामोश आवाज़ें।
टूटे, तोड़े गए स्वार्थवश परस्पर विश्वास,
हर गली हर चौराहे पे फैला अविश्वास,
लाल लाल छींटों से घबराता, डरता