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फिर तो चाहे दफ़्न कर दे कोई या जला जाये, आख़िरी उ

फिर तो चाहे दफ़्न कर दे कोई या जला जाये, 
आख़िरी उम्मीद भी क्यों न मिट्टी में मिला जाये, 
कहीं मरते वक़्त जिससे हमदर्दी की आस रही हो 
वो अपना, बेरुख़ी से पीठ दिखा के चला जाये।

©Shubhro K #Unbearable