ओझल ओझल...धूमिल धूमिल ये छितिज दिखता हैं,ओ छितिज भी दिखता हैं, ना अंत का आरंभ दिखता हैं, बस एक प्रारंभ दिखता हैं, कठिनाइयों का बसेरा.. मन में दुःख बिरखता हैं...; हर पल एक नई चाह लिए निखरता हैं..¡! _तृषा मधु