जहाँ बस सके कोई भी आकर, ऐसा कोई शहर कर दो। ऐसा कर ना पाओ गर, परिंदों का मजहब मुकर्रर कर दो।। इंसानों की बस्ती में तुम्हें, इंसां बनकर ही रहना होगा, जहाँ ना हो कोई साया मजहब का, ऐसा इंसानियत का घर कर दो।। इंसानियत का घर #insaniyat #majhab #insaan #kavirameshkumar #rameshkumarrahi #rahi #rahikikalamse