आह ! ये क्या हो गया हमारी हिंदी को किसने छू लिया कितनी मासूम थी, कितनी शीतल थी कितनी निर्मल थी, कितनी बेख़ौफ थी फिर ये गजब कैसे हो गया इसका आंचल मैला किसने कर दिया क्या हम जिम्मेदार है इसके न हिफाजत कर पाये अपनी हिंदी की शालीनता वाली हिंदी का दामन छोड़ के रूख अपना पाश्चात्य आंग्ल की तरफ मोड़ दिया भरी महफिल में इसका साथ छोड़ दिया ये देखके हिंदी का रो रो के बुरा हाल हो गया छोड़ के महफ़िल को वो अपने को छिपाने लगी अपनी लाज वो अपनो से खुद ही बचाने लगी हर तरफ अपने लिए वो प्यार ढ़ूढने लगी अपने ही घर से वो बेघर होने लगी हर तरफ तिरस्कार पाकर वो और दुःखी होने लगी जो कल तक चलती थी बेखौप सड़को पे वो आज चलती है डरती सहमती हुई गली मोहल्लो में कब तक ये हाल रहेगा आंग्ल भाषा के सर पे ये ताज रहेगा हमारी हिंदी के साथ ये बर्ताव रहेगा आओ सब मिलके वादा करते हैं हम अपनी हिंदी भाषा को इंसाफ दिलाते है आज से हिंदी में सब काम करे अपनी मातृभाषा का नाम करे आह ! ये क्या हो गया हमारी हिंदी को किसने छू लिया कितनी मासूम थी, कितनी शीतल थी कितनी निर्मल थी, कितनी बेख़ौफ थी फिर ये गजब कैसे हो गया इसका आंचल मैला किसने कर दिया क्या हम जिम्मेदार है इसके न हिफाजत कर पाये अपनी हिंदी की