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अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं रुख़ हवाओ

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं

रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है

अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं

वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियोंसे

किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं

चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब

सोचते रहते हैं किस राहगुज़र के हम हैं

- निदा फाजली

©PRIYANK SHRIVASTAVA 'ARMAAN' अपनी मर्जी से- निदा फाजली  #boat

अपनी मर्जी से- निदा फाजली #boat

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