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पिता और माँ के आँखों की पुतलियों सी होती हैं, बहने

पिता और माँ के आँखों की पुतलियों सी होती हैं,
बहनें तो भई चंचल चुलबुल तितलियों सी होती हैं।
घर के चार दिवारों को इक पूरे संसार सा कर दें जो, 
जेठ दुपहरी सावन भादो, सबको त्योहार सा कर दें जो।
छू दें जो इक डोर तो उसको पावन कर दें, 
आँखों के सूने मौसम को सावन कर दें।
राखी के गोटे, रेशम की सुतलियों सी होती हैं, 
बहनें तो भई चंचल चुलबुल तितलियों सी होती हैं।

-आशीष कुमार पिता और माँ के आँखों की पुतलियों सी होती हैं,

बहनें तो भई चंचल चुलबुल तितलियों सी होती हैं।


घर के चार दिवारों को इक पूरे संसार सा कर दें जो, 

जेठ दुपहरी सावन भादो, सबको त्योहार सा कर दें जो।
पिता और माँ के आँखों की पुतलियों सी होती हैं,
बहनें तो भई चंचल चुलबुल तितलियों सी होती हैं।
घर के चार दिवारों को इक पूरे संसार सा कर दें जो, 
जेठ दुपहरी सावन भादो, सबको त्योहार सा कर दें जो।
छू दें जो इक डोर तो उसको पावन कर दें, 
आँखों के सूने मौसम को सावन कर दें।
राखी के गोटे, रेशम की सुतलियों सी होती हैं, 
बहनें तो भई चंचल चुलबुल तितलियों सी होती हैं।

-आशीष कुमार पिता और माँ के आँखों की पुतलियों सी होती हैं,

बहनें तो भई चंचल चुलबुल तितलियों सी होती हैं।


घर के चार दिवारों को इक पूरे संसार सा कर दें जो, 

जेठ दुपहरी सावन भादो, सबको त्योहार सा कर दें जो।