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किसको अपने जख्म दिखाऊं किसको अपनी व्यथा सुनाऊं इ

किसको अपने जख्म दिखाऊं 
किसको अपनी व्यथा सुनाऊं 
इतनी ढेर किताबें लेकर‌ 
अब मैं शाला कैसे जाऊं। 

बीस किताबें ठूंस ठूंस कर‌ 
मैंने बस्ते में भर दीं हैं 
बाजू वाली बनी जेब में 
पेन पेंसिलें भी धर दीं हैं 
किंतु कापियां सारी बाकी 
उनको मैं अब कहां समाऊं। 

आज धरम कांटे पर जाकर‌ 
मैंने बस्ते को तुलवाया 
वजन बीस का निकला मेरा 
बस्ता तीस किलो का पाया 
चींटी होकर हाय किस तरह‌ 
मैं हाथी का बोझ उठाऊं। 

गधों और बच्चों में अब तो 
बड़ा कठिन है अंतर करना 
जैसे गधे लदा करते हैं 
हम बच्चों को पड़ता लदना 
कंधे, पीठ बेहाल हमारे 
अगर कहें तो अभी दिखाऊं। बस्ते का बढ़ता बोझ
किसको अपने जख्म दिखाऊं 
किसको अपनी व्यथा सुनाऊं 
इतनी ढेर किताबें लेकर‌ 
अब मैं शाला कैसे जाऊं। 

बीस किताबें ठूंस ठूंस कर‌ 
मैंने बस्ते में भर दीं हैं 
बाजू वाली बनी जेब में 
पेन पेंसिलें भी धर दीं हैं 
किंतु कापियां सारी बाकी 
उनको मैं अब कहां समाऊं। 

आज धरम कांटे पर जाकर‌ 
मैंने बस्ते को तुलवाया 
वजन बीस का निकला मेरा 
बस्ता तीस किलो का पाया 
चींटी होकर हाय किस तरह‌ 
मैं हाथी का बोझ उठाऊं। 

गधों और बच्चों में अब तो 
बड़ा कठिन है अंतर करना 
जैसे गधे लदा करते हैं 
हम बच्चों को पड़ता लदना 
कंधे, पीठ बेहाल हमारे 
अगर कहें तो अभी दिखाऊं। बस्ते का बढ़ता बोझ