Nojoto: Largest Storytelling Platform

ग़ज़ल- सोज़िश-ए-दर्द को हासिल कहाँ आराम अभी दि

ग़ज़ल-

सोज़िश-ए-दर्द को हासिल कहाँ आराम अभी
दिल के ज़ख्मों में रफ़ू का है बहुत काम अभी

हो रहे हैं मेरे तामीर दरो-बाम अभी
सब्र कर और ज़रा गर्दिश-ए-अय्याम अभी

रोज़ सीने में सुलग उठती है शोलों की तरह
हार मानी है कहाँ हसरत-ए-नाकाम अभी

आसमां छूने की चाहत तो बहुत है लेकिन
फिक्र का मेरी परिंदा है तहे-दाम अभी

ऐ उजालों के अमीं क्या ये तुझे इल्म नहीं
कितने सूरज हैं तेरे शहर में गुमनाम अभी

ख़ून-ए-इन्सां जो बहाते हैं अबस सड़कों पर
वो हक़ीक़त में हैं ना वाक़िफ़-ए-अन्जाम अभी

चैन हासिल हो मेरे दिल को भला कैसे 'जमाल'
ज़द पे गर्दिश के हैं दीवार-ओ-दरो-बाम अभी
ग़ज़लकार-
ग़ज़ल-

सोज़िश-ए-दर्द को हासिल कहाँ आराम अभी
दिल के ज़ख्मों में रफ़ू का है बहुत काम अभी

हो रहे हैं मेरे तामीर दरो-बाम अभी
सब्र कर और ज़रा गर्दिश-ए-अय्याम अभी

रोज़ सीने में सुलग उठती है शोलों की तरह
हार मानी है कहाँ हसरत-ए-नाकाम अभी

आसमां छूने की चाहत तो बहुत है लेकिन
फिक्र का मेरी परिंदा है तहे-दाम अभी

ऐ उजालों के अमीं क्या ये तुझे इल्म नहीं
कितने सूरज हैं तेरे शहर में गुमनाम अभी

ख़ून-ए-इन्सां जो बहाते हैं अबस सड़कों पर
वो हक़ीक़त में हैं ना वाक़िफ़-ए-अन्जाम अभी

चैन हासिल हो मेरे दिल को भला कैसे 'जमाल'
ज़द पे गर्दिश के हैं दीवार-ओ-दरो-बाम अभी
ग़ज़लकार-