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संतुष्ट नहीं कोई भी धरा पर, ख्वाब कभी भी पूर

संतुष्ट  नहीं  कोई भी  धरा  पर, ख्वाब  कभी भी  पूरा  होता  नहीं,
हर  कोई  बढ़कर  चाहे, जब  मन  गढ़ता  हो  नित नई  कहानियाँ।

पैदल की चाह  साईकिल, साईकिल  से गाड़ी  फिर हवाई  जहाज,
ना टिके  ना रूके, चंचल  चपल  द्रुतगामी होते मन की निशानियाँ।

जब  आँख  खुली  हर  ख़्वाब  थे झूठे,  ख़ुद को  बस  तन्हा  पाया,
लिखा जो तक़दीर बना रहूँ फ़कीर, थी केवल मन की मेहरबानियाँ।
 📌नीचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को रचना का सार..📖 की प्रतियोगिता :- 178 में स्वागत करता है..🙏🙏

💫आप सभी 4-6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
संतुष्ट  नहीं  कोई भी  धरा  पर, ख्वाब  कभी भी  पूरा  होता  नहीं,
हर  कोई  बढ़कर  चाहे, जब  मन  गढ़ता  हो  नित नई  कहानियाँ।

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ना टिके  ना रूके, चंचल  चपल  द्रुतगामी होते मन की निशानियाँ।

जब  आँख  खुली  हर  ख़्वाब  थे झूठे,  ख़ुद को  बस  तन्हा  पाया,
लिखा जो तक़दीर बना रहूँ फ़कीर, थी केवल मन की मेहरबानियाँ।
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