याद आती हैं वो भूली बिसरी गलियाँ बार बार, जब बड़ों के जाने के बाद यों अन्जान बन गईं, कि मैं चाह कर भी वापिस न जा पाई थी वहाँ, याद अाते ही आँखें अश्कों के बहर में डूब गईं। बेचैन नज़रें हर बार सुकून के लिए वहाँ टिकती थी, मग़र हमेशा अपनी ही मर्ज़ी हर जगह कहाँ चलती है, सुकून तो मिलता है, ठिकाने की तलाश नहीं रुकती थी, यहाँ तो मेरी क्या यादों की मर्ज़ी भी नहीं चलती है। वो भूली बिसरी गलियाँ बस सिमट गईं थीं मुझ तक, और किसी पे इसका असर हुआ बेअसर सा लगता है, वो कोई जो मुझे अपना न समझते हुए भी मेरा अपना है, और कई बार कोई पराया न चाहते हुए भी अपना सा लगता है। जब भी हम किसी पराये को अपना मान कर इतराते हैं, अपने खुद-ब-खुद सामने आ कर अपना एहसास जताते हैं, ये दूरियों का डर ही करीब ला देता है इतना हमारे, कि फिर कभी भी जुदा होने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं। याद आती हैं वो भूली बिसरी गलियाँ बार बार, जब बड़ों के जाने के बाद यों अन्जान बन गईं, कि मैं चाह कर भी वापिस न जा पाई थी वहाँ, याद अाते ही आँखें अश्कों के बहर में डूब गई। #गलियाँ #NaPoWriMo #yqdidi #yqhindi #yqbaba #yqquotes #yqhindiquotes #bestyqhindiquotes