सबके चेहरे अनजान ही है...... चेहरों पर चेहरा सजा है, कोन किस का मुखेटा है सब्र का ही इम्तहा है जो जो हर चेहरे पर बसा है..।। चेहरों पर बदलते लिबाज़, ये रहे अपना-अपना हिसाब, पहचान तो दूर तलक नही जो पहने अपनेपन का लिबाज़..।। हकीकत उन चेहरों की क्या, जो छिपा रहे उस बात की क्या, पर्दा डालकर कह रहे है जो सामने बोलने की औकात क्या.।। -मनीष कलाल सबके चेहरे अनजान ही है...... चेहरों पर चेहरा सजा है, कोन किस का मुखेटा है सब्र का ही इम्तहा है जो जो हर चेहरे पर बसा है..।।