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हैरत है कि मेरा कोई ख़ता न था फिर भी वह फासले

हैरत    है कि मेरा कोई ख़ता न था 
फिर भी वह फासले बढ़ा कर गई ।
#बज़्म 
होगी  वह किसी सहर की ग़ज़ल 
ख़्वाब  से मुझको जगाकर गई ।
#क़लम_ए_ख़ास 
साहस न   था कि अत्यधिक लिखूँ
आस का दीया कोई जलाने लगी ।
#शब्द_खेल 
जाग उठा निर्जीव वाद्य यंत्र भी 
ज़िन्दगी जब राग सुनाने लगी ।
 #dpf
हैरत    है कि मेरा कोई ख़ता न था 
फिर भी वह फासले बढ़ा कर गई ।
#बज़्म 
होगी  वह किसी सहर की ग़ज़ल 
ख़्वाब  से मुझको जगाकर गई ।
#क़लम_ए_ख़ास 
साहस न   था कि अत्यधिक लिखूँ
आस का दीया कोई जलाने लगी ।
#शब्द_खेल 
जाग उठा निर्जीव वाद्य यंत्र भी 
ज़िन्दगी जब राग सुनाने लगी ।
 #dpf