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बीतते समय के साथ थोड़ा थोड़ा रोज खर्च हो जाता हूं

बीतते समय के साथ थोड़ा थोड़ा रोज खर्च हो जाता हूं में
कभी इसके हिस्से कभी उसके किस्से में,
चर्चा में आ जाता हूं में।।
कल जो पाने की चाह थी ,अब वो नहीं है 
जो मिल गया ,समय पर अब वो ही सही है ।।
अपने ही सपने ,अपनी ही गोद में
थपकियां दे कर सुलाता हूं में।
कहता नहीं हूं कभी किसी से में ,
पर अब शाम ढले थोड़ा थक सा जाता हूं में।।
उम्मीदें, अपेक्षा, जिम्मेदारियों का आकाश उठाता हूं में।
इन सब के बीच अपनी इच्छाओं को दबाता हूं में।।
कुछ अपने लिए लेने का रोज मन बनाता हूं में ,
फिर अभी तो चलेगा ये और कुछ साल 
ऐसा कह के अपने मन को समझाता हूं में ।।
यूंही थोड़ा थोड़ा खर्च हो रहा हूं में ,,
रोज किसी की कहानी ,किसी के किस्से में 
मध्यवर्गीय के नाम से सुनाया जाता हूं में ।।

©gaurav shukla
  #मध्यमवर्गीय