पिता! तेरी तारीफ़ से आ जाती है जान उम्मीदों के सफ़र में और हौसले का अलाव धधक उठता है ख़ाक:-ए -हयात से खिल उठती हैं मक़सद की मीनारें # पिता! तेरी शाबाशी से हौसला धड़कता है