"इंसान" होकर भी "इंसान" के कोई काम ना आया "इश्क़" हो या "दोस्ती" "वफ़ा" कहां किसने निभाया दौलत शौहरत की आरज़ू हैं, "प्रेम" कहाँ किसने पाया साथी बनते टूट जाते हैं, उम्र भर साथ किसने निभाया मंज़िल के "सफ़र" में मिले जो, "अजनबी" सबको पाया कोई साथ नहीं देता, "स्वार्थ" का स्त्रोत समझ मैं पाया जीवन पथ की "राहों" में बस यही साथ निभाते आया आत्म विश्वास, मेहनत, प्रेम, सत्य साथी मैं समझ पाया बना इन्हीं को बंधु अपना, सच्चा 'स्नेह' इनसे मेने पाया वफ़ा मिलेगी उम्र भर, बिन इनके कौन मंज़िल को पाया मंज़िल के साथी:_ #restzone #rzलेखकसमूह #rztask28 #manjil #मजिंल #साथी #अल्फाज_ए_कृष्णा