जब कोई स्त्री रास्ते से जा रही हो चाहे छोटे कपडे पहने हो या अजीब सा वस्त्र पहने हो या वो कहीं स्नान कर रही हो या कपड़े बदल रही हो या किसी से एकांत में बात कर रही हो तो क्यों पुरुषों को उलझन होती है क्यों उनके भीतर बैचनी होने लगती है। वो तो अपनी सहजता से चल रही है स्नान कर रही है। तो पुरुषों को क्यों परेशानी होती है। ये कष्ट पुरुषों का है क्यों उनके भीतर बैचेनी हो रही है। मुश्लिम में अपने भीतर के बेचैनी का ईलाज ना करके स्त्री को पर्दे में नकाब में डाल दिया तो क्या उनकी बेचैनी कम हो गयी है। नही वो और कामुक हो गये। ""ईलाज किसका होना चाहिये था और किसका हो रहा है।"" इस अवस्था में पशु हमसे ठीक दिख रहे है। ""जो सत्य पुरुष होगा वो अपने भीतर का ईलाज करेगा ना किसी दूसरों को छिपाएगा य पर्दे में रखेगा।""" मन का ईलाज होना चाहिए कि ये बेचैनी हममे कहाँ से जन्म ले रही है। #fact of life