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अद्भिर्गात्राणि शुध्यन्ति मनः सत्येन शुद्यति। विद्

अद्भिर्गात्राणि शुध्यन्ति मनः सत्येन शुद्यति।
विद्यातपोभ्यां  भूतात्मा बुद्धिर्ज्ञानेन शुद्यति ।।

मनु स्मृति का श्लोक कहता है कि---

जल से स्नान करने पर जैसे हमारे शरीर की शुद्धि होती है ठीक वैसे सी सत्य का स्मरण रखने पर मन पवित्र होता है। तप करने से आत्मा शुद्ध होती है और बुद्धि की पवित्रता ज्ञानार्जन से आती है। ठीक इसी प्रकार विद्या ग्रहण करने से जीवन संपन्न होता है। शिक्षा के अधिकारों को लेकर देश में सबसे पहले 18 मार्च 1910 में ब्रिटिश विधान परिषद के समक्ष निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का प्रस्ताव गोपाल कृष्ण गोखले जी ने रखा था जो उस समय ख़ारिज कर दिया गया था।
:
इसके  बाद आज़ाद भारत के संविधान में इसके लिए कई प्रावधान और संशोधन हुए जो -आगे चल कर निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 के रूप में पारित हुआ और 1 अप्रैल 2010 से लागू हो गया। इसे हम आज (RTE) 06- 14 बर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य रूप से विद्यालय से जोड़ कर पढ़ाया जा रहा है।
:
मैं तो बस यह बताना चाहता हूँ कि यह शिक्षा के अधिकार का मूल विचार मनुस्मृति के एक श्लोक के सूत्र में निहित है--
😊

कन्यानां सम्प्रदानं च कुमाराणां च रक्षणाम।।
अद्भिर्गात्राणि शुध्यन्ति मनः सत्येन शुद्यति।
विद्यातपोभ्यां  भूतात्मा बुद्धिर्ज्ञानेन शुद्यति ।।

मनु स्मृति का श्लोक कहता है कि---

जल से स्नान करने पर जैसे हमारे शरीर की शुद्धि होती है ठीक वैसे सी सत्य का स्मरण रखने पर मन पवित्र होता है। तप करने से आत्मा शुद्ध होती है और बुद्धि की पवित्रता ज्ञानार्जन से आती है। ठीक इसी प्रकार विद्या ग्रहण करने से जीवन संपन्न होता है। शिक्षा के अधिकारों को लेकर देश में सबसे पहले 18 मार्च 1910 में ब्रिटिश विधान परिषद के समक्ष निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का प्रस्ताव गोपाल कृष्ण गोखले जी ने रखा था जो उस समय ख़ारिज कर दिया गया था।
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इसके  बाद आज़ाद भारत के संविधान में इसके लिए कई प्रावधान और संशोधन हुए जो -आगे चल कर निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 के रूप में पारित हुआ और 1 अप्रैल 2010 से लागू हो गया। इसे हम आज (RTE) 06- 14 बर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य रूप से विद्यालय से जोड़ कर पढ़ाया जा रहा है।
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मैं तो बस यह बताना चाहता हूँ कि यह शिक्षा के अधिकार का मूल विचार मनुस्मृति के एक श्लोक के सूत्र में निहित है--
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कन्यानां सम्प्रदानं च कुमाराणां च रक्षणाम।।