ये दिल की बेताबी, ये बेक़रारी कैसे इसे समझाऊं, जितना रोकूँ उतना ही मचले, जो है नही हाँसिल वो ही पाने को, क्यों ये तरसे... मगर फिर भी समझना ही होगा इश्क़ से रूह भीगी है तो अब अश्क़ों से दिल भिगोना होगा ये ही इस दुनिया की रीत है यहाँ कब मोहब्बत की जीत है ....सुमन रोक रहा हूँ क़दमों को उस की गली में जाने से.. दोस्तो आदाब। अक्सर हम ख़ुद को रोकते हैं वहाँ जाने से मगर ये दिल कहाँ मानता है। कश्मकश में डाल देता है। Collab करें -YQ Bhaijan के साथ..