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​कहनी भाग 2 कहना तो बहुत कुछ था अब मेरे बोलने के

​कहनी भाग 2

कहना तो बहुत कुछ था अब मेरे बोलने के बीच में कार के AC की भरभराहट मुझे परेशान कर रही थी! मैं गुस्से में कार से बाहर आया और जोर से दरवाजा बंद कर दिया.. वो चुप चाप चली गयी... सभी विवादों के बीच मे पढ़ाई सबसे पहले अवरुद्ध हो गई थी! देश की उस बड़ी आबादी के बीच मे खो जाने का डर भी लग रहा था जिसकी गणना भारत सरकार ने बेरोजगारी का सर्वे बंद करा कर कर दी थी! मैं खुद को small town सा महसूस तो कर रहा था मगर उसे मेट्रो की संजा देना नही चाहता था! जो कई स्टेशनों से गुजरती है। अगर मेट्रो कहूं तो अब किसी दूसरे स्टेशन पर जाती थी और मैं भूगोल की कक्षा मे बैठकर मेट्रो और स्टेशन के बीच के संबंधों विश्लेषण करने लगा और दिमाग मैं एक नयी उधेड-बुन ने जन्म लिया... वो आज भी नहीं आयी.. 2 घंटे बीत गए क्लास खत्म होने बाद सोने का पूरा मूड बनाकर निकल पड़ा लेकिन उसकी कार को देखकर माफ़ी मांगने और सफाई देने का मौका ढूंढने लगा!

25-20 बार फोन का जवाब  जब उसने नहीं दिया तो निराश होकर उसके आखरी कही बात याद आयी?? "किसी और से भी बात खत्म करनी है" (क्या यह एक नवनिर्मित स्टेशन था?) एक बार फिर फोन किया.. इस बार उसने 10-15 मिनट मे आने की बात कही! वासु ने पूछा कहा है वो? मै, शुभम के रूम पर! वसु बिना कुछ समझे या यूं कह सकते हैं मेरे बीते 4-5 दिन की गितिविधयों का गलत आंकलन कर मुझे आशिक कह कर चलने को बोलने लगा! मैं बिना कोई प्रतिक्रिया दिए इंतजार कराता रहा और मन मे अपने सबंध का आंकलन करने लगा! मेने खुद को समझाया, हम क्यों किसी की तरह किसी की निगाहों से समझे जाएं कि हम कौन हैं...,हम बहुत अच्छे दोस्त भी हो सकते हैं 

वसु ऐसा नही है मैने कहा.. कैसा है मैं सब जानता हूं कहकर उसने मेरी बात काट दी. मेरी बात निराधार नहीं थी मगर मैं सफाई देने से ज्यादा घड़ी पर ध्यान दे रहा था! 10-20 मिनट कब के बीत गए कहकर वासु चला गया मै वहीं उसकी कार से टिक कर खड़ा रहा! दोपहर की धूप मुझे प्रभावहीन लग रही थी.. मैं बस इस डर से नहीं गया के कहीं वो रोती हुई आये और उसे मैं वहां नही मिलूँ! 

5:22 हो रहे थे सामने से वो आती हई दिखी , चेहरे पर बनावटी मुस्कुराहट वो सामन्य दिखने और मुझे परेशान नही करने की एक असफल कोशिश  कर रही थी! अभी तक गया नही..? उसने पूछा ! नहीं... कहकर मैने उसे कार मे बैठने को कहा! उसके घर जल्दी जाने की चिंता उससे ज्यादा अब मुझे परेसान कर रही थी! अभी time है चली जाना थोड़ी देर से, मैने अधिकार जताते हुए कहा.. वो मान गयी!

कार के शीशे पर बन रहे उसके अस्पष्ट प्रतिबिंब को देखते हुए मैंने कहा अगर मैं माफ़ी मांगू तो का माफ कर देगी? पता नही, उसनेकहा!.. 

Continue....

©ekrajhu कहानी भाग 2 
#nojotahindi 
#hindi_story 
#कहानी 
#पान_ki_dukan 😜
barbad Ek Aawaj 

#AWritersStory
​कहनी भाग 2

कहना तो बहुत कुछ था अब मेरे बोलने के बीच में कार के AC की भरभराहट मुझे परेशान कर रही थी! मैं गुस्से में कार से बाहर आया और जोर से दरवाजा बंद कर दिया.. वो चुप चाप चली गयी... सभी विवादों के बीच मे पढ़ाई सबसे पहले अवरुद्ध हो गई थी! देश की उस बड़ी आबादी के बीच मे खो जाने का डर भी लग रहा था जिसकी गणना भारत सरकार ने बेरोजगारी का सर्वे बंद करा कर कर दी थी! मैं खुद को small town सा महसूस तो कर रहा था मगर उसे मेट्रो की संजा देना नही चाहता था! जो कई स्टेशनों से गुजरती है। अगर मेट्रो कहूं तो अब किसी दूसरे स्टेशन पर जाती थी और मैं भूगोल की कक्षा मे बैठकर मेट्रो और स्टेशन के बीच के संबंधों विश्लेषण करने लगा और दिमाग मैं एक नयी उधेड-बुन ने जन्म लिया... वो आज भी नहीं आयी.. 2 घंटे बीत गए क्लास खत्म होने बाद सोने का पूरा मूड बनाकर निकल पड़ा लेकिन उसकी कार को देखकर माफ़ी मांगने और सफाई देने का मौका ढूंढने लगा!

25-20 बार फोन का जवाब  जब उसने नहीं दिया तो निराश होकर उसके आखरी कही बात याद आयी?? "किसी और से भी बात खत्म करनी है" (क्या यह एक नवनिर्मित स्टेशन था?) एक बार फिर फोन किया.. इस बार उसने 10-15 मिनट मे आने की बात कही! वासु ने पूछा कहा है वो? मै, शुभम के रूम पर! वसु बिना कुछ समझे या यूं कह सकते हैं मेरे बीते 4-5 दिन की गितिविधयों का गलत आंकलन कर मुझे आशिक कह कर चलने को बोलने लगा! मैं बिना कोई प्रतिक्रिया दिए इंतजार कराता रहा और मन मे अपने सबंध का आंकलन करने लगा! मेने खुद को समझाया, हम क्यों किसी की तरह किसी की निगाहों से समझे जाएं कि हम कौन हैं...,हम बहुत अच्छे दोस्त भी हो सकते हैं 

वसु ऐसा नही है मैने कहा.. कैसा है मैं सब जानता हूं कहकर उसने मेरी बात काट दी. मेरी बात निराधार नहीं थी मगर मैं सफाई देने से ज्यादा घड़ी पर ध्यान दे रहा था! 10-20 मिनट कब के बीत गए कहकर वासु चला गया मै वहीं उसकी कार से टिक कर खड़ा रहा! दोपहर की धूप मुझे प्रभावहीन लग रही थी.. मैं बस इस डर से नहीं गया के कहीं वो रोती हुई आये और उसे मैं वहां नही मिलूँ! 

5:22 हो रहे थे सामने से वो आती हई दिखी , चेहरे पर बनावटी मुस्कुराहट वो सामन्य दिखने और मुझे परेशान नही करने की एक असफल कोशिश  कर रही थी! अभी तक गया नही..? उसने पूछा ! नहीं... कहकर मैने उसे कार मे बैठने को कहा! उसके घर जल्दी जाने की चिंता उससे ज्यादा अब मुझे परेसान कर रही थी! अभी time है चली जाना थोड़ी देर से, मैने अधिकार जताते हुए कहा.. वो मान गयी!

कार के शीशे पर बन रहे उसके अस्पष्ट प्रतिबिंब को देखते हुए मैंने कहा अगर मैं माफ़ी मांगू तो का माफ कर देगी? पता नही, उसनेकहा!.. 

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