तारीफों मे तेरे लिखे कई पन्ने,मेरा अनमोल खजाना था.. मुस्कुराते उन पन्नो को देखूं तो लगे,वो भी क्या जमाना था..!! शुरुआत तो हुई थी सफर का, साथ मे तेरे मगर.. पता नहीं था मुझे छोड़ तुम्हें,दुर बहुत जाना था..!! घर से निकल आया परदेश मैं जल्दी,पैसों कि मजबूरी थी... किससे कहुँ मुझे माँ की आँचल में,थोरा और वक्त बिताना था..!! कबतक याद कर कर के जीता,कबतक अश्क गिराना था.. समय की इस रफ्तार मे तुझसा,मुझको भी तुम्हें भुलाना था..!! दिल को बहुत शुकुन मिला,जो मै लौट आया अपने गाँव में तो... आखिर कबतक शहरों से यूँ ही मुझको, झुठा प्यार निभाना था..!! तुम वो दरीया जो समुदंर मे जा मिले,ऐसे मे तो फिर... उदास होके मुझे एक दिन साहिल से,खाली ही लौट आना था..!! #random#YQbaba Written few months ago