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सायकिल दिवस पर एक छोटी सी हास्यप्रद बात जो कि पापा

सायकिल दिवस पर एक छोटी सी हास्यप्रद बात जो कि पापा ने बताई थी मेरे दादाजी के बारे में।

"पहले गाँव में साधन के नाम पर केवल सायकल हुआ करती थी। और मेरे दादाजी को अकेले सायकल चलाना बेहद पसंद था। तो गाँव से जब भी शहर जाना होता तो कोई न कोई उनके साथ हो लेता और दादाजी को ये बिल्कुल पसंद नहीं आया, कि कभी कोई शहर से आ रहा है साथ तो कभी कोई सामान मंगवा रहा है। दादाजी ने इससे बचने की एक युक्ति निकाली, कि उन्होंने सायकल की पीछे वाली सीट निकालकर रख दी।
अब उस दिन के बाद से कोई नहीं बोला कि हमे भी ले चलो😂😂
और जब सामान लाने का मन होता सीट लगा लेते।
स्वभाव से नरम थे लेकिन सबकी कोई न कोई पसन्द तो होती ही है और सायकल पर अकेले सैर करना उन्हें पसन्द था। #WorldBicycleDay #सायकल दिवस
सायकिल दिवस पर एक छोटी सी हास्यप्रद बात जो कि पापा ने बताई थी मेरे दादाजी के बारे में।

"पहले गाँव में साधन के नाम पर केवल सायकल हुआ करती थी। और मेरे दादाजी को अकेले सायकल चलाना बेहद पसंद था। तो गाँव से जब भी शहर जाना होता तो कोई न कोई उनके साथ हो लेता और दादाजी को ये बिल्कुल पसंद नहीं आया, कि कभी कोई शहर से आ रहा है साथ तो कभी कोई सामान मंगवा रहा है। दादाजी ने इससे बचने की एक युक्ति निकाली, कि उन्होंने सायकल की पीछे वाली सीट निकालकर रख दी।
अब उस दिन के बाद से कोई नहीं बोला कि हमे भी ले चलो😂😂
और जब सामान लाने का मन होता सीट लगा लेते।
स्वभाव से नरम थे लेकिन सबकी कोई न कोई पसन्द तो होती ही है और सायकल पर अकेले सैर करना उन्हें पसन्द था। #WorldBicycleDay #सायकल दिवस