मेरा गाँव से शहर आना बहुत सी यादो को पिछें छोङ आने जैसा था। ग्गिल्ली डण्डे के साथ , फाल्गुन के रंगों में गुम होना मानो! मै ओझल हो गया। जाने ईन शहर कि गलियों मे गाँव को ढूंढँने में कहाँ खो गया।। अपन्त्व,पयार,अपनापन,स्नेह,सत्कार,सम्मान सब , मधुर प्रेम ना जान पाया गाँव से यादों का ईक मेला और प्रेम का सगंम जैसे मै अपने साथ ले आया। शहर को अपनाकर गाँव को अलविदा कह आया।। माँ ने प्यार दिखाया और पिताजी ने जैसे गले लगाया। वो अपनत्व शहर आकर कहाँ पाया। बहन कि डाँट से ज्यादा अब शिकायते "दोस्ती" चुपके से निभा रही है ये शहर कि गलिया। जैसे खेल रही हो अठखेलियाँ।। मै चुपके से जब-जब खोया यादों में ।। हर पल शायद ईसी बात को सोचकर रोया ईरादो में। दोस्तो से किए वादों में। हाँ मै कहता था मिलने आते रँहूगा। मुझे क्या पता था शहर में ईतना व्यस्त हो जाऊँगा। के हर बार यार -दोस्तो से यहीं कहूँगा। अब ना जाने कब गाँव जाना होगा। या शहर में हि गुम हो जाना होगा। ये " शहर" है। आज मुझे मालूम हुआ मेरे गाँव से शहर तक की जिन्दंगी..👤👥👣🤝👣..#nojotoapp#nojotolove#nojotopoetry#nojotoqutoes#nojotostories#erotica#NeetuKiKalamSe# #MeraShehar Palvi Chalana Satyaprem Upadhyay Pragati Maurya Varsha Kushwah 🌈