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कल शाम की बात है फिर वही जज़्बात है, कल शाम की बात

कल शाम की बात है  फिर वही जज़्बात है, कल शाम की बात है, सवाई माधोपुर से जयपुर आना था. स्टेशन पर पटना से अजमेर जानेवाली ज़ियारत एक्सप्रेस खड़ी दिखी. सेकेण्ड एसी के सामने टीटी खड़ा था, उससे टिकट बनवाई और चढ़ने लगा.मुझसे आगे चार लोग और थे, सब तीसरे कम्पार्टमेंट के आगे जाकर ठिठकते और फिर आगे बढ़ जा रहे थे. मैंने सोचा, कोई नया अध्यादेश आ गया होगा, मैं भी वहाँ जाकर ठिठका और अंदर देखा तो पता चला कि आदित्यनाथ और ओवैसी जैसे लोग भी किसी के काम आ सकते हैं. अंदर एक मुस्लिम परिवार था, सिर्फ पति तथा पत्नी, ढेर सारी जगह पड़ी थी, लेकिन कोई उनके पास नहीं बैठा. मैंने उनसे इज़ाज़त मांगी और बदले में वो सज़्ज़न अखबार से मेरे लिए सीट साफ़ करने लगे. उनकी उम्र को देखते हुए मुझे बड़ा अजीब लगा और मैंने उन्हें रोका, वो मुस्कुराने लगे.

कुछ देर बाद बोले, "आपके पहले चार लोग रुके थे, लेकिन हमे देखकर आगे बढ़ गए" मैंने कहा, "मेरी अच्छी किस्मत" और हम सब हंस पड़े. बातों-बातों में पता चला कि उनका बेटा दुबई रहता है, उसी ने उनके लिए पैसे भेजे हैं, अजमेर जाने के लिए, फिर उन्होंने एक खजूर का पैकेट निकाला और मुझे देते हुए कहा, "इसे चखियेगा जरूर, इसका बीज इतना नरम है कि उसे भी खाया जा सकता है". फिर पता चला कि उन्हें पता नहीं था कि इस ट्रेन में पैंट्री नहीं है और उन लोगों ने कल शाम के बाद सिर्फ बिस्किट  और खजूर ही खाया है. मैं बाथरूम के बहाने बाहर आया और अपने मित्र को प्याज़ कि कचौड़ी लेकर स्टेशन आने को कहा. मुझे लगा उनके "खजूर जिहाद" का बदला मैं "कचौड़ी जिहाद" से चुका सकता हूँ. पुरे रस्ते हमारे बीच हर मुद्दे पर बात हुई, उनकी साफगोई का मैं कायल हो गया.

जयपुर में जब मैंने उन्हें कचौड़ी दी, वो बिलकुल हैरान थे, दोनों ने खाया, कमाल की बात थी, खा वो रहे थे, और संतुष्ट मैं हो रहा था. वो मेरे साथ बाहर आये और कहा, "अच्छा हिन्दू भी होता है, मुसलमान भी, वैसे ही बुरा हिन्दू भी होता है, मुसलमान भी. सब इस बात पर टिका है कि हमारी मुलाकात किस "टाइप" के हिन्दू या मुसलमान से होती है". वो जा चुके थे. मैं मन ही मन भगवान से ये प्रार्थना कर रहा था कि हर हिन्दू की मुलाकात ऐसे ही मुसलमान से हो, और उधर ट्रेन में शायद वो भी ऐसी ही कोई दुआ मांग रहे होंगे. मैंने दूर तक देखा, सिर्फ "लव" नज़र आया. "जिहाद" का कहीं नामो-निशान नहीं था.

नोट- "जिहाद" शब्द का प्रयोग सिर्फ प्रासंगिक है. इसके असली अर्थ से कृपया इसे न जोड़ें.
कल शाम की बात है  फिर वही जज़्बात है, कल शाम की बात है, सवाई माधोपुर से जयपुर आना था. स्टेशन पर पटना से अजमेर जानेवाली ज़ियारत एक्सप्रेस खड़ी दिखी. सेकेण्ड एसी के सामने टीटी खड़ा था, उससे टिकट बनवाई और चढ़ने लगा.मुझसे आगे चार लोग और थे, सब तीसरे कम्पार्टमेंट के आगे जाकर ठिठकते और फिर आगे बढ़ जा रहे थे. मैंने सोचा, कोई नया अध्यादेश आ गया होगा, मैं भी वहाँ जाकर ठिठका और अंदर देखा तो पता चला कि आदित्यनाथ और ओवैसी जैसे लोग भी किसी के काम आ सकते हैं. अंदर एक मुस्लिम परिवार था, सिर्फ पति तथा पत्नी, ढेर सारी जगह पड़ी थी, लेकिन कोई उनके पास नहीं बैठा. मैंने उनसे इज़ाज़त मांगी और बदले में वो सज़्ज़न अखबार से मेरे लिए सीट साफ़ करने लगे. उनकी उम्र को देखते हुए मुझे बड़ा अजीब लगा और मैंने उन्हें रोका, वो मुस्कुराने लगे.

कुछ देर बाद बोले, "आपके पहले चार लोग रुके थे, लेकिन हमे देखकर आगे बढ़ गए" मैंने कहा, "मेरी अच्छी किस्मत" और हम सब हंस पड़े. बातों-बातों में पता चला कि उनका बेटा दुबई रहता है, उसी ने उनके लिए पैसे भेजे हैं, अजमेर जाने के लिए, फिर उन्होंने एक खजूर का पैकेट निकाला और मुझे देते हुए कहा, "इसे चखियेगा जरूर, इसका बीज इतना नरम है कि उसे भी खाया जा सकता है". फिर पता चला कि उन्हें पता नहीं था कि इस ट्रेन में पैंट्री नहीं है और उन लोगों ने कल शाम के बाद सिर्फ बिस्किट  और खजूर ही खाया है. मैं बाथरूम के बहाने बाहर आया और अपने मित्र को प्याज़ कि कचौड़ी लेकर स्टेशन आने को कहा. मुझे लगा उनके "खजूर जिहाद" का बदला मैं "कचौड़ी जिहाद" से चुका सकता हूँ. पुरे रस्ते हमारे बीच हर मुद्दे पर बात हुई, उनकी साफगोई का मैं कायल हो गया.

जयपुर में जब मैंने उन्हें कचौड़ी दी, वो बिलकुल हैरान थे, दोनों ने खाया, कमाल की बात थी, खा वो रहे थे, और संतुष्ट मैं हो रहा था. वो मेरे साथ बाहर आये और कहा, "अच्छा हिन्दू भी होता है, मुसलमान भी, वैसे ही बुरा हिन्दू भी होता है, मुसलमान भी. सब इस बात पर टिका है कि हमारी मुलाकात किस "टाइप" के हिन्दू या मुसलमान से होती है". वो जा चुके थे. मैं मन ही मन भगवान से ये प्रार्थना कर रहा था कि हर हिन्दू की मुलाकात ऐसे ही मुसलमान से हो, और उधर ट्रेन में शायद वो भी ऐसी ही कोई दुआ मांग रहे होंगे. मैंने दूर तक देखा, सिर्फ "लव" नज़र आया. "जिहाद" का कहीं नामो-निशान नहीं था.

नोट- "जिहाद" शब्द का प्रयोग सिर्फ प्रासंगिक है. इसके असली अर्थ से कृपया इसे न जोड़ें.
pravinkumar3858

Pravin Kumar

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