आज़ाद पंक्षियों को उड़ते देखकर- मन में मेरे थी जागी ख़्वाहिश- छू सकूँ अम्बर-आकाश को- पूरी कर सकूँ सारी ख़्वाहिश- सागर की गोद में खेल सकूँ- बहती हवा से लहरा सकूँ- बारिश की बूंदों सा सबको सराबोर कर सकूँ- चाँद-सितारों जैसा जगमगा सकूँ- कोयल की आवाज़ जैसे कहकहे लगा सकूँ- करूँ सारे सपनो को साकार- दूँ दुनिया को एक नई आकार- दुनिया की इस भीड़ से हटकर- बना सकूँ अपनी एक नयी पहचान- सारी खुशियाँ को मेरे सामने- मिले जीवन को एक नया पयाम- भागदौड़ की इस जीवन में- ग़मो ने मेरी हर एक खुशी को- हर एक चाहत को लूटा सा है! सब कुछ है पास मेरे,पर- ये जग ही हमसे रूठा सा है!! #NojotoQuote #ये जग ही हमसे रूठा सा है। पूर्ण कविता अनुशिर्षक में- कुछ टूटा सा-कुछ छूटा सा- कुछ बिखड़े तो-कुछ लूटा सा- सब कुछ है पास मेरे,पर- ये जग ही हमसे रूठा सा है!!