लगता है मेरे लफ़्ज़ से चुभते काँटे हैं। जबकि मैंने तो बस दर्द अपने ढाँपे हैं। इश्क़ बर्बाद से ज़्यादा आबाद करता है, क्योंकि उसी से मैंने सँवारे टूटे पारे हैं। गिरने के बाद सीखा संभलके चलना, उम्मीदों के साथ, फिर हौसले बाँधे हैं। अपने सिवा, कोई किसी का ना होता, ख़ुद के लिए लम्हात ख़ुशी के छाने हैं। ख़्वाहिश नहीं 'धुन', ज़रूरत ही तो है, पूरे लुटाके भी एहसास मिले आधे हैं। पारे- Pieces ♥️ Challenge-520 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए।