रंगमंच सच्चे दिल से निकली बातें अक्सर अनगिनत दिलों तक जाती हैँ नदियों निकले चाहे कितने ऊँचे पर्वत से आखिर मे जाकर सागर से मिल जाती हैँ सच्चे दिल से निकली बातें अक्सर अनगिनत दिलों तक जाती हैँ अक्सर मिलते हैँ लोग हमे पहले चुप चुप रहते थे अब कहते हैँ बोलो बोलो याद तुम्हारी आती है आखिर मे जाकर सागर से मिल जाती हैँ जब जब उगता है सूर्य नमन होता है चहुँओर जब होती है तपती दोपहर तब याद शाम की आती है आखिर मे जाकर सागर से मिल जाती हैँ जब तक उछाल है सागर मे लहरें करती है उलट फेर जब होती है उछाल खत्म तो खुद शांत किनारों से मिलने आती हैँ आखिर मे जाकर सागर से मिल जाती हैँ ये वेग ये उद्वेग ये आवेश जीवन क्षण भर का है रंगमंच होता है अनंत मौन जब मृत्यु जीवन को विराम लगाती है आखिर मे जाकर सागर से मिल जाती हैँ हो ज़ाते सब अभाव और प्रभाव खत्म बस विचार की पूँजी ज़िन्दा रह जाती है आखिर मे जाकर सागर से मिल जाती हैँ ©शिवम मिश्र