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।। मतवाले ।। खेल बचपन के भी यारो, बड़े निराले थे

।। मतवाले ।। 

खेल बचपन के भी यारो, बड़े निराले थे ,
कुछ में अव्वल ,जीत के कुछ में लाले थे,
न डर था किसी रुसवाई या जलालत का,
उम्मीद खुद से बेहिसाब, तब न पाले थे ।। 

फिर न जाने कब,इस जेहन ये गुरुर आया,
वो अल्हड़पन गया, अकड़ने का सहूर आया,
हर छोटी बात के, कितने मतलब निकाले थे,
हम खुद से ज्यादा, जमाने के अब हवाले थे ।। 

फिर झाँकता हूँ, भीतर तो कुछ तो खलता है,
ओस लाख सही,पर अब भी कुछ तो बलता है,
अक्स देख कर खुद का,अब यूं मुस्कुरा लेते हैं ,
आइना कहता है, कि हम भी बड़े मतवाले थे।।

©Dinesh Paliwal
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