समझो लिख रही हूँ तुम्हारे दिल की बात, तुम्हारे उनके लिये, क्योंकि जानती हूँ उनके ख़याल में खो लिखना भूल जाते हो। इश्क़ तो इश्क़ है, इसका एहसास, ख़याल, दर्द होता एक-सा, क्योंकि मिलने के बाद अक़्सर, तुम भी बोलना भूल जाते हो। अनकही बातों का ढेर ये-वो वो-ये सोचे बहुत सुनाने के लिये, क्योंकि मिल उनसे, खो उन्हीं में, लफ़्ज़ चुनना भूल जाते हो। ख़ुद से करते हो जो तुम वक़्त-बेवक़्त उनकी शिकायतें इतनी, क्योंकि उनकी फ़ुर्सत में देख ख़ुद को वो रूठना भूल जाते हो। अरे! फ़िक्र न करो तुम हमारी, कौन-सा ज़िक्र-ठप्पा है लगाया, क्योंकि जानती 'धुन', उनके ख़याल में तुम अपना भूल जाते हो। रमज़ान 17वाँ दिन #रमज़ान_कोराकाग़ज़