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जाना!तुम्हारा ये आखिरी बार दोबारा से मिलना, कहने क

जाना!तुम्हारा ये आखिरी बार दोबारा से मिलना,
कहने के लिए कि अब प्यार नहीं है तुमको,
कपकपाती सी लरज जो आती है,तुम्हारी आवाज़ में ना,
उसे सिर्फ मैं सुन सकती हूं!
कहने की चाह मुझे रोक लो, पर दुनिया के लिए मुझे जाने दो,
मैंने भी तुमको टोकना छोड़ दिया है अब,
तुम रुकते हो फिर चलते हो, फिर एकाएक मुड़कर,
मेरी आंखों में देखकर, कुछ कहते कहते ठहर जाते हो,
क्या सोचते हो? जानती नहीं मैं,
कि क्या कहना है तुमको!
तुम ना भी मुड़ते तो भी,
तुम्हारी पीठ पर चिपकी मेरी आंखें,
तुम्हारे उस स्वेटर से अंदर जाकर,
दिल को टटोलकर उसकी सुनकर उसे समझाकर,
वापस उस दरवाजे पर अटक जाती,
जहां से अभी-अभी तुम गए हो,
तुम आग हो जाना और मैं वफादार परवाना,
जलूंगी तो इसी आग में ही, 
वरना यूं ही भटकती रहूंगी व्यर्थ,
तुम्हें जाना है ना तो जाओ,
पर तुम एकबार लौट आना तब मेरे पास,
जब दुनिया के उठते शोर में, अपनी आवाज़ सुन ना पाओ,
वक़्त के थपेड़ों से खुद को थाम ना पाओ,
तब भी मिलूंगी में तुम्हें इसी कमरे में खड़ी,
उसी दरवाजे को ताकती हुई दोनों बाहें खोले,
कि समेट लूंगी तुमको इक भी शब्द बिना बोले।। जाना!तुम्हारा ये आखिरी बार दोबारा से मिलना
कहने के लिए कि अब प्यार नहीं है तुमको
कपकपाती सी लरज जो आती है 
तुम्हारी आवाज़ में ना
उसे सिर्फ मैं सुन सकती हूं
कहने की चाह मुझे रोक लो
पर दुनिया के लिए मुझे जाने दो
मैंने भी तुमको टोकना छोड़ दिया है अब
जाना!तुम्हारा ये आखिरी बार दोबारा से मिलना,
कहने के लिए कि अब प्यार नहीं है तुमको,
कपकपाती सी लरज जो आती है,तुम्हारी आवाज़ में ना,
उसे सिर्फ मैं सुन सकती हूं!
कहने की चाह मुझे रोक लो, पर दुनिया के लिए मुझे जाने दो,
मैंने भी तुमको टोकना छोड़ दिया है अब,
तुम रुकते हो फिर चलते हो, फिर एकाएक मुड़कर,
मेरी आंखों में देखकर, कुछ कहते कहते ठहर जाते हो,
क्या सोचते हो? जानती नहीं मैं,
कि क्या कहना है तुमको!
तुम ना भी मुड़ते तो भी,
तुम्हारी पीठ पर चिपकी मेरी आंखें,
तुम्हारे उस स्वेटर से अंदर जाकर,
दिल को टटोलकर उसकी सुनकर उसे समझाकर,
वापस उस दरवाजे पर अटक जाती,
जहां से अभी-अभी तुम गए हो,
तुम आग हो जाना और मैं वफादार परवाना,
जलूंगी तो इसी आग में ही, 
वरना यूं ही भटकती रहूंगी व्यर्थ,
तुम्हें जाना है ना तो जाओ,
पर तुम एकबार लौट आना तब मेरे पास,
जब दुनिया के उठते शोर में, अपनी आवाज़ सुन ना पाओ,
वक़्त के थपेड़ों से खुद को थाम ना पाओ,
तब भी मिलूंगी में तुम्हें इसी कमरे में खड़ी,
उसी दरवाजे को ताकती हुई दोनों बाहें खोले,
कि समेट लूंगी तुमको इक भी शब्द बिना बोले।। जाना!तुम्हारा ये आखिरी बार दोबारा से मिलना
कहने के लिए कि अब प्यार नहीं है तुमको
कपकपाती सी लरज जो आती है 
तुम्हारी आवाज़ में ना
उसे सिर्फ मैं सुन सकती हूं
कहने की चाह मुझे रोक लो
पर दुनिया के लिए मुझे जाने दो
मैंने भी तुमको टोकना छोड़ दिया है अब