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यों तो रस्मों रिवाज़ों में बँधती नहीं एक बंदिश है स

यों तो रस्मों रिवाज़ों में बँधती नहीं
एक बंदिश है साँसों की बस रूह पे
कोई शय इन निगाहों में जँचती नहीं
एक तू ही है काबिज़ शबे नूर पे
चाहत का हासिल किसे चाँद है
देखते हैं तुझे रूहबर दूर से
अल सफ़र तू चला और रहा बेनिशाँ
जाने कितने निशाँ हैं मेरी रूह पे
दो जहाँ में हैं बसते हैं ज़ानिब जहाँ
मैं ज़र्रा-ए-ज़मी तू पूरा आसमाँ
मौसम ये बरसेगा बरसों बरस
आह बादल समेटेंगे कितना भला





 #toyou#thetimes#yqspheres#helplessness#musicofheart
यों तो रस्मों रिवाज़ों में बँधती नहीं
एक बंदिश है साँसों की बस रूह पे
कोई शय इन निगाहों में जँचती नहीं
एक तू ही है काबिज़ शबे नूर पे
चाहत का हासिल किसे चाँद है
देखते हैं तुझे रूहबर दूर से
अल सफ़र तू चला और रहा बेनिशाँ
जाने कितने निशाँ हैं मेरी रूह पे
दो जहाँ में हैं बसते हैं ज़ानिब जहाँ
मैं ज़र्रा-ए-ज़मी तू पूरा आसमाँ
मौसम ये बरसेगा बरसों बरस
आह बादल समेटेंगे कितना भला





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