जिस्म पर बाक़ी ये सर है क्या करूँ दस्त-ए-क़ातिल बे-हुनर है क्या करूँ चाहता हूँ फूँक दूँ इस शहर को शहर में इन का भी घर है क्या करूँ वो तो सौ सौ मर्तबा चाहें मुझे मेरी चाहत में कसर है क्या करूँ पाँव में ज़ंजीर काँटे आबले और फिर हुक्म-ए-सफ़र है क्या करूँ 'अनस' का दिल 'अनस' का दिल है मगर वो नज़र फिर वो नज़र है क्या करूँ 'अनस' में हूँ एक नूरानी किताब पढ़ने वाला कम-नज़र है क्या करूँ