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White कहीं ऐसा तो नहीं, हर ज़गह ग़लत मेरी भावनाएँ ही

White कहीं ऐसा तो नहीं, हर ज़गह ग़लत मेरी भावनाएँ ही रहीं,
मेरी बेवज़ह की फ़िक्र भरी आदतें , मेरे अपनों से मुझे दूर करती रहीं।।
शायद सही रहे होंगे वो लोग, जो मुझसे दूर हुए या दूरी का मन बनाते गए,
जिसके ख़्यालों और ख़्वाबों पे मैने हक़ जताया, वो मुझसे फ़ासले बढ़ाते गए।। 
क्या करूँ कहाँ जाऊँ, कोई मन्दिर, मस्ज़िद, दरग़ाह बताये,
दर्द से ज़हन यूँ जकड़ गया है, कि साँस हलक़ में रुक रुक जाए।।
अब तक आलम ये था कि, ख़्वाबों से नींदें नज़र मिलायें,
मन्ज़र है अब कुछ ऐसा सा, कि ख़्वाब ही सारे नींद उड़ाएं।।
तन्हा सा है बड़ा चुप सा है, ख़ुदा दिखा दे  कोई डगर,
भीड़ दिखे ना सूरज दिखता, हाक़िम तेरा बेसुध सा है।।

©HAQIM◆E◆ISHQ【sfr◆ak◆aaghhaaj】Gj
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