"ज़िद्दी-प्रेम" रुकमणी संग फिर ब्याह रचाया, राधा को कान्हा मिल नहीं पाया, मृग तृष्णा सीता को आई, वियोगी हो गये खुद रघुराई, हठ सती का जब नाथ ने माना, त्रिलोकी ने प्रेम-शोक था जाना, जिद्दी हुआ जब प्रेम का नाता, हतप्रभ रह गये खुद भाग्यविधाता ।। "ज़िद्दी-प्रेम" रुकमणी संग फिर ब्याह रचाया, राधा को कान्हा मिल नहीं पाया, मृग तृष्णा सीता को आई, वियोगी हो गये खुद रघुराई, हठ सती का जब नाथ ने माना,