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हम औरत उसी को समझते हैं जो हमारे घर की हो, और हम

हम औरत उसी को समझते हैं जो हमारे घर की हो, 

और हमारे लिए कोई औरत नहीं होती, बस गोश्त की दुकान होती है। 

और हम उस दुकान के बाहर खड़े कुत्तों की तरह होते हैं,

 जिनकी हवसज़दा नज़र हमेशा गोश्त पर टिकी रहती है।

- मंटो
{ निष्प्रभ मन्नु मल्होत्रा } #Color
हम औरत उसी को समझते हैं जो हमारे घर की हो, 

और हमारे लिए कोई औरत नहीं होती, बस गोश्त की दुकान होती है। 

और हम उस दुकान के बाहर खड़े कुत्तों की तरह होते हैं,

 जिनकी हवसज़दा नज़र हमेशा गोश्त पर टिकी रहती है।

- मंटो
{ निष्प्रभ मन्नु मल्होत्रा } #Color