ये फिजायें भी रोशन हैं गुलों के रंगों से, लगता है ये इक शुरुआत है। शायद कोई महबूब आने वाला है, इसलिए सजी पूरी कायनात है। इंतेज़ार में जिसके महकने लगा ये तमाम गुलशन, उसमें ज़रूर कुछ तो बात है। दिल कहे बस जाऊँ इन्हीं फिजाओं में, सो जाऊँ इन वादियों आँचल की छांव में। इक अजब सी ताज़गी है इन बाद ए सबाओं में, ज़रूर कुछ तो राज़ छुपा है किसी की दुआओं में। क्या खूब निखर के बिखरे हैं मेरे ये अल्फ़ाज़, अब तो खुल गए उनके सारे राज़। अल्फ़ाज़ तो अभी बाक़ी हैं , मगर भर गई है मेरी ये किताब। बेबस लाचार सा खोया हूँ, कुछ इस क़दर चढ़ा है उनके चेहरे पे नक़ाब। इंतेज़ार खत्म हुआ तब जाकर, जब हट गया उनके चेहरे से हिजाब। दिल में फैली हैं बस उनकी रंगीन फिजाएं, क्या खूब हुस्न की करामात है। टूट गए मन के तार सारे, उसमें ज़रूर कुछ तो बात है। --------------विशाल----------- #उसमें ज़रूर कुछ तो बात है,,,